Friday, April 19, 2013

मन


 मन जब उसका कायल था
हर  अदा पे उसके घायल था
पर उसका दिल वो हार गया
रन छोड़ वहां से भाग गया

 मन यादें बड़ी संजोता है
हर हार पे अपनी रोता है
पर रोज़ तरीके सोच सोच 
खुश भी यूँ ही हो जाता है
मन आज मेरा परेशां खड़ा
पुचा उस से भाई बात बता
बॊला मुझसे,कोई बात नहीं
है सबसे बड़ा मलाल यही
है चंचल मन कहीं टिकता नहीं
रुख हवा के साथ बदलता है
पुचा उसे, उसे क्यूँ ठोर नहीं
बोला अपना कोई और नहीं 
हर  रंग रंगा , बहका ये मन
हर रोज़ क़सीदे पढता है
खुली लम्हों के दहशत से
उत्सव ये रोज़ मनाता है
मन को जाने कौन यहाँ
मन तेरा मेरा मोहताज नहीं
खुशियों में घिरा उदास छिपा
बर्बादी में भी हार नहीं